Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
19 Dec 2020 · 6 min read

कोरोना ने दिखाई जीवन-राह

अक्सर बातचीत में हम परस्पर चर्चा करते हैं या हमारे बड़े-बूढ़े भी हमें नसीहत देते रहते हैं साहस रखने की, सहनशीलता रखने की, अनुकूल-प्रतिकूल परिस्थितियों में भी सामान्य रहने की लेकिन तब वे तमाम बातें हमें नितांत उबाऊ और सिर्फ कथावाचक के प्रवचन-सी प्रतीत होती हैं. बुजुर्गगण हमें जब-तब समझाते रहते हैं कि इंसान को सदैव आत्मविश्वास के साथ-साथ कदम-कदम पर साहस, पराक्रम एवं परिश्रम का परिचय देना चाहिए, तभी हम जीवन में कामयाब हो सकते हैं. हमें यह भी बताया जाता है कि नकारात्मकता हमारे आत्मविश्वास में गिरावट लाती है, यह आत्मसम्मान के रास्ते में रुकावट पैदा करती है. आड़े वक्त के लिए कुछ बचाकर रखो..हैल्थ इज वेल्थ अर्थात स्वास्थ्य ही सच्चा धन है, जैसी बातें भी हमारे कानों में जब-तब सुनाई देती रहती हैं. स्वास्थ्य संबंधी घरेलू नुस्खे भी हम सब एक-दूसरे को बताते फिरते हैं, भले ही हम उन्हें आजमाते नहीं. आज के जमाने में यह भी तकियाकलाम सा बन गया है कि- बी पॉजीटिव अर्थात सकारात्मक रहें, आदि-आदि तमाम-तमाम बातें. लेकिन इन सब बातों को रस्मी तौर पर दूसरों से कहते हैं और दूसरे जब सुनाते हैं तो एक कान से सुनकर दूसरे से निकाल देते हैं.
वैश्विक महामारी के इस दौर में कोराना ने हमें बुजुर्गो की बहुत सी नसीहतों को प्रायोगिक तौर पर समझा दिया है. इसने हमारे साहस, धैर्य, सामुदायिक चेतना की परीक्षा भी लिया है और बचत के महत्व को भी हमने बखूबी समझा है. दो महीनों का पूर्ण लॉकडाउन हमारे लिए एक अद्भुत-रोमांचक अनुभव रहा. इसकी कोविड-19 संक्रमण की जांच और इसके संक्रमण के दौर से गुजरना भी कम नसीहतपूर्ण नहीं रहा. कोरोना ने हमें सिर्फ व्यवहारिक इंसान ही नहीं, एक अच्छा-खासा फिलॉसफर भी बना दिया. हमने दो माह के लॉकडाउन के साथ-साथ और अब जबकि अनलॉक की प्रक्रिया चल रही है, बहुत कुछ सीखा. हमें आत्मावलोकन का अवसर प्राप्त हुआ. हमने जाना कि हम आज भी प्रकृति के सामने किस कदर बौने हैं. प्रकृति ने एक करवट क्या ली, मनुष्य अपनी सीमाओं में कैद हो गया. अपनी हदें पहचानने के लिए मजबूर हो गया. इसी समाज में मानवता और दानवता दोनों से साक्षात्कार हुआ, प्राकृतिक संसाधनों व पर्यावरण के अंधदोहन के दुष्परिणामों का भी आभास हुआ. व्यापार, अर्थव्यवस्था, उद्योग, व्यवसाय सब बंद पड़े हैं सिर्फएक-एक सांस सुरक्षित लेने के लिए. इतनी आपात स्थिति में वैश्विक स्तर पर कूटनीतिक साजिशों, बयानबाजी व अनर्गल प्रलाप भी देखा गया. कोरोना जैसी महामारी के काल में ही हमने सांप्रदायिकता का कुत्सित खेल भी देखा, जो नियंत्रण में केवल इसलिए रहा कि सब एक विषाणु के खौफके साये में हैं और येन-केन-प्रकारेण जान बचाने में व्यस्त हैं अन्यथा हालत क्या होते, अनुमान नहीं लगाया जा सकता. हमने यह बखूबी जाना कि जान और जहान का संतुलन तभी रहेगा, जब मनुष्य अपना कपटवाला आवरण उतार कर शांति एवं सादगी के मार्ग पर अग्रसर होगा. कोरोना के कारण मजबूरन प्राप्त छुट्टी का मजा भी हमने चखा और काम में व्यस्तता के आनंद को भी समझा. जहां अब तक हम टीवी के एक-दो सीरियल तक सीमित थे, लेकिन लॉकडाउन में हमने चैनल बदल-बदल कर देखे. सिर्फ स्टेटस सैंबल के तौर पर अखबार लेनेवालों ने भी अखबार में एक-एक खबरें ही नहीं, उसमें छपे विज्ञापनों को भी गंभीरता से बार-बार पढ़ा.
कोरोना के पूर्ण लॉकडाउन में जहां बहुत बड़ी आबादी घरों में कैद थी, जो नित नई-नई रेसिपी बनाकर जीभ को संतुष्ट करने में लगी थी, वहीं दूसरा दृश्य मजदूरों के महा-पलायन को भी देखा कि किस तरह मजदूर वर्ग अपनी जान को जोखिम में डालकर कोरोना के खौफ से अपने गांवों की ओर भाग रहे हैं. किस तरह उनके नियोक्ताओं और ठेकेदारों ने उन्हें उनके हाल पर छोड़ दिया. अगर चाहते तो उनके नियोक्ता अपने सीएसआर फंड से उनकी बेहतर व्यवस्था कर सकते थे. हालांकि विभिन्न स्थानों पर यह सकारात्मक नजारा भी देखने को मिला कि विभिन्न सेवाव्रती नागरिक, समाजसेवी और धार्मिक संगठनों ने दिल खोलकर मजदूरों की सेवा की, उनके खाने-पीने और रहने का बंदोबस्त किया. नागपुर शहर में अनेक ऐसे नौजवान भी सामने आए जिन्होंने कोरोना काल में तय की गई अपनी शादी को सस्ते में निपटा लिया और बाकी रकम कोरोना से प्रभावित लोगों की सेवा में अर्पित कर दी. ऐसा करनेवालों में केवल हिंदू समाज ही नहीं बल्कि मुस्लिम समाज के लोग भी सामने आए. शासन-प्रशासन की बदहाली का यह नजारा भी सामने आया कि रेल पटरी में सोए कुछ मजदूर मालगाड़ी के नीचे आकर काल-कवलित हो गए. यह अत्यंत हृदयविदारक दृश्य भी सामने आया. कई ऐसी खबरें भी इस समय पढ़ने को मिलीं कि कुछ लोग कोरोना बीमारी से घबराकर आत्महत्या तक कर लिए. यहां तक कि कई फिल्मी और टीवी सीरियलों में काम करने वाले कलाकार भी आर्थिक बदहाली का शिकार होकर आत्महत्या करने को मजबूर हो गए. कोरोना में हो रही हजारों मौतों के साथ ऐसी खबरें भी मिलीं कि अत्यंत वयोवृद्धों ने भी बिंदास भाव से कोरोना संक्रमण को ङोला और स्वस्थ होकर घर वापस हुए. कोरोना ने सकारात्मकता, साहस, दैनिक नियोजन, आर्थिक बचत, स्वास्थ्य के महत्व, सात्विक-पोषक खानपान और दूरदर्शिता के महत्व को बखूबी समझा दिया है.
हमने यह भी जाना कि केवल भारता माता का जयकारा लगाना ही देशभक्ति नहीं है बल्कि देश में व्याप्त संकट के क्षणों में व्यवहारिक नजरिया अपनाकर उसके मुताबिक जीवनपथ अपनाना कहीं अधिक महत्वपूर्ण है. जैसे इस समय देश के सामने कोरोना महामारी का संकट है अत: इससे मुकाबले के लिए बनाई सरकार की गाइड लाइन का पूरा-पूरा पालन करना ही इस वक्त सच्ची देशभक्ति है. मैं देख रहा हूं बहुत से हमारे बुद्धिजीवी साथी भी तोतारटंत की कहानी की तरह शिकारी से बचने के उपाय के तरीके-‘शिकारी आता है, जाल दिखाता है, दाने का लोभ दिखाता है, जाल में नहीं फंसना चाहिए’ रटते तो रहते हैं लेकिन व्यवहार में इस सूत्र का पालन नहीं करते, नतीजतन वे कोरोना वायरस की चपेट में आ जाते हैं और दूसरों को भी इसका शिकार बनाते हैं. जब हमें मालूम है कि व्यक्ति-व्यक्ति के बीच दो गज की दूरी का पालन करना है तो फिर भाईचारे की दुहाई देकर एक टेबल पर साथ बैठकर खाने का क्या औचित्य, पूजा स्थलों को खोलने की जिद क्यों, सार्वजनिक स्थानों में अनावश्यक भीड़ क्यों, पुलिस के डर से ठुड्ढी पर मास्क को लटकाना क्यों, लेकिन ऐसा करते हुए हमारा यह तर्क देना कि प्रतिकूल क्षणों में भी हम भाईचारा और श्रद्धा-भक्ति नहीं छोड़ते जबकि सच्चा भाईचारा और देशभक्ति सरकार की बनाई कोविड मार्गदर्शिका के पालन में है.
कोरोना की भयावह महामारी के दृष्टिगत देश में समस्त नागरिकों को प्रदत्त निर्देशों का कड़ाई से अनुपालन करना, अधिकृत माध्यम से प्रचारित-प्रसारित बचाव के तरीकों का उपयोग करना, भयभीत करने और समाज में द्वेषता फैलानेवाली अफवाहों से बचना, कोरोना वायरस स्ट्रेन से बचाव हेतु दिशा निर्देशों का अनुपालन आपकी व समस्त समाज व राष्ट्र की सुरक्षा से जुड़ा अत्यधिक संवेदनशील व गंभीर विषय है. एक व्यक्ति के स्तर से हुई लापरवाही के गंभीर परिणाम हो सकते हैं. सुरक्षित सामुदायिक दूरी अपनाते हुए बाहर निकलना, अति आवश्यक हो तो ही बाहर निकलना, शासन-प्रशासन, पुलिस तंत्र, मीडिया एवं देवदूत के रूप में स्वास्थ्य सेवाओं से जुड़े चिकित्सक, पैरामेडिकल स्टाफ, सफाई कर्मियों के प्रति सम्मानजनक रवैया रखना हमारा परम कर्तव्य है. इस दौरान आपके पास-पड़ोस में अगर कोई कोरोना पॉजीटिव पाया जाता है तो उसे और उसके परिजनों को किसी अजूबे व हिकारत की दृष्टि से न देखकर उनके प्रति मानवीय नजरिया कायम रखना ही इन दिनों सच्ची देशभक्ति है. कुछ जागरूक संस्थाएं व समाज के प्रबुद्धजन और समाजसेवी भी जो अपने स्तर पर इस वृहद अभियान में अपना अमूल्य योगदान कर रहे हैं, उन्हें सम्मानित करना भी हमारा कर्तव्य है. सीधी और साफ बात यह है कि इस संक्रामक महामारी से राष्ट्र व इसके नागरिकों की सुरक्षा करना इस समय हम सबकी सर्वोच्च प्राथमिकता है. आपदा के इस समय में स्वच्छता, सुरक्षित सामुदायिक दूरी व समय-समय पर सरकार की ओर से जारी मार्गदर्शिका का अक्षरश: पालन करना एक सभ्य एवं जिम्मेदार नागरिक होने के नाते हमारा परम कर्तव्य है.
अंत में कवि अवधेश अहलूवालिया की पंक्ति यहां पेश करना जरूरी समझता हूं.
‘‘अंधियारा जाने को है,
नया सवेरा आने को है,
जीवन के इस कठिन मोड़ पे,
नई चेतना उन्मुक्त होने को है.
जीवन को उत्कृष्ट करें,
तन-मन को निर्मल करें
साहस-संयम का संचार करें,
हृदय को पवित्र करें, नया वातावरण बनने को है.’’
बेशक अभी अंधियारा ही अंधियारा नजर आ रहा है लेकिन उजाला भी आएगा इसमें कोई संदेह नहीं है, देर हो सकती है, अबेर नहीं. कोरोना पर भी दुनिया विजय पाएगी. लेकिन हमारे इस दुश्मन कोरोना ने जो संदेश हमें दिया है, उस पर भी गौर कर अपनाने की जरूरत है. हम यह न भूलें कि कोरोना ने हमें संकट दिया है तो भविष्य की राह भी दिखाई है.

Language: Hindi
Tag: लेख
4 Likes · 3 Comments · 421 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
डॉ अरूण कुमार शास्त्री
डॉ अरूण कुमार शास्त्री
DR ARUN KUMAR SHASTRI
Ghazal
Ghazal
shahab uddin shah kannauji
नमस्ते! रीति भारत की,
नमस्ते! रीति भारत की,
Neelam Sharma
Wishing you a very happy,
Wishing you a very happy,
DrChandan Medatwal
2843.*पूर्णिका*
2843.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
चित्र कितना भी ख़ूबसूरत क्यों ना हो खुशबू तो किरदार में है।।
चित्र कितना भी ख़ूबसूरत क्यों ना हो खुशबू तो किरदार में है।।
लोकेश शर्मा 'अवस्थी'
जिंदगी का ये,गुणा-भाग लगा लो ll
जिंदगी का ये,गुणा-भाग लगा लो ll
गुप्तरत्न
🌹जिन्दगी🌹
🌹जिन्दगी🌹
Dr Shweta sood
कुशादा
कुशादा
Mamta Rani
अपने माँ बाप पर मुहब्बत की नजर
अपने माँ बाप पर मुहब्बत की नजर
shabina. Naaz
तेरे बिछड़ने पर लिख रहा हूं ग़ज़ल की ये क़िताब,
तेरे बिछड़ने पर लिख रहा हूं ग़ज़ल की ये क़िताब,
Sahil Ahmad
नजरिया रिश्तों का
नजरिया रिश्तों का
विजय कुमार अग्रवाल
मौसम - दीपक नीलपदम्
मौसम - दीपक नीलपदम्
नील पदम् Deepak Kumar Srivastava (दीपक )(Neel Padam)
*दिल कहता है*
*दिल कहता है*
Kavita Chouhan
कोई तो है
कोई तो है
ruby kumari
भगतसिंह का क़र्ज़
भगतसिंह का क़र्ज़
Shekhar Chandra Mitra
फितरते फतह
फितरते फतह
Jeewan Singh 'जीवनसवारो'
प्रेम उतना ही करो
प्रेम उतना ही करो
पूर्वार्थ
।। समीक्षा ।।
।। समीक्षा ।।
विनोद कृष्ण सक्सेना, पटवारी
"सोचता हूँ"
Dr. Kishan tandon kranti
भगवावस्त्र
भगवावस्त्र
Dr Parveen Thakur
क्यों ज़रूरी है स्कूटी !
क्यों ज़रूरी है स्कूटी !
Rakesh Bahanwal
♥️पिता♥️
♥️पिता♥️
Vandna thakur
Li Be B
Li Be B
Ankita Patel
हिडनवर्ग प्रपंच
हिडनवर्ग प्रपंच
मनोज कर्ण
खून के रिश्ते
खून के रिश्ते
Dr. Pradeep Kumar Sharma
"जीवन अब तक हुआ
*Author प्रणय प्रभात*
हम हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान है
हम हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान है
Pratibha Pandey
हर एक से छूटा है राहों में अक्सर.......
हर एक से छूटा है राहों में अक्सर.......
कवि दीपक बवेजा
लाल बचा लो इसे जरा👏
लाल बचा लो इसे जरा👏
तारकेश्‍वर प्रसाद तरुण
Loading...