Hamko Chor Batane Wale – Poet Anurag Ankur’s Ghazal – कवि अनुराग अंकुर की गजल
संनाटे में साँस ले रहे , जी भर शोर मचाने वाले
खुद गठरी लेकर भागे हैं , हमको चोर बताने वाले
झूठ की रातें बीत गयीं,सच का सूरज चढ़ आया है
कितने अच्छे से सोये हैं खामो – खाह जगाने वाले
सूख गया मलबा जब सारा, कीड़ों जैसे सूख गये
खुद को दरिया बता रहे थे नाले में इतराने वाले
बात हुई जब किये धरे की पीछे भागे, खड़े हुए
खुद की जुबाँ सिले बैठे हैं, सबकी जुबाँ सिलाने वाले
इधर अटकती, उधर अटकती, गज़ल छटकती दिखती है
खुद को ग़ालिब समझ रहे थे, फ़र्ज़ी शेर सुनाने वाले