दूर नज़र से होकर भी जो, रहता दिल के पास।
सोना जेवर बनता है, तप जाने के बाद।
आँखों में उसके बहते हुए धारे हैं,
नील पदम् Deepak Kumar Srivastava (दीपक )(Neel Padam)
दीवारों की चुप्पी में राज हैं दर्द है
बदलती हवाओं की परवाह ना कर रहगुजर
लोग बस दिखाते है यदि वो बस करते तो एक दिन वो खुद अपने मंज़िल
विचार
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
मौन तपधारी तपाधिन सा लगता है।
जूनियर झनक कैलाश अज्ञानी झाँसी
*दो दिन फूल खिला डाली पर, मुस्काकर मुरझाया (गीत)*
’शे’र’ : ब्रह्मणवाद पर / मुसाफ़िर बैठा
मुखड़े पर खिलती रहे, स्नेह भरी मुस्कान।
*ना जाने कब अब उनसे कुर्बत होगी*
*जब हो जाता है प्यार किसी से*