गज़ल
खुशी से जिसे था गले से लगाया
उसी ने मुझे दर्द दे कर रुलाया
बहे अश्क तो भी सभी से छुपाए
धुंएं का तो उनसे बहाना बनाया
भले आजमा ले मेरे बाजूओं को
अभी उनमे हिम्मत बहुत है बकाया
ख़तावार छूटे हैं अक्सर यहाँ पे
मगर बेगुनाहों को फांसी चढ़ाया
न शिकवा शिकायत रही वक़्त से भी
मुझे अर्श से फर्श तक चाहे लाया
खुदा के सिवा कौन रहबर है मेरा
गिरा गर कभी तो उसी ने उठाया
निशाने सियासत के पैने बड़े थे
किसानों के मुद्दों को जड़ से मिटाया
हवाओं से रही दुश्मनी रोज जिसकी
वो अम्बर को भी फिर कहाँ जीत पाया
न बैठे बिठाए ही मिलती है मंजिल
तपा खुद जो सूरज सवेरा वो लाया
चमक लौट आयी थी चेहरे पे उसके
जो हीरे को पत्थर पे हमने घिसाया