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याद अब कुछ भी नहीं है एक मंजर के सिवा
हर जगह मैं ढूंढता हूँ खुद को अन्दर के सिवा
मुश्किलों ने मार डाला जी रही है ज़िंदगी
आदमी में है बचा क्या अस्थि पिंजर के सिवा
घोसलों में ही हमेशा जो रहे थे अब तलक
वो परिन्दें उड़ रहे हैं देखिए पर के सिवा
हँस रहा क्यों चोट खाकर इक पहेली बन गई
कौन समझे दर्द दिल के एक शायर के सिवा
लाख दौलत हम कमाएं जो रहे परदेस में
कुछ नहीं अच्छा लगे अपने ही इस घर के सिवा