__6__पालनहार
किसे सुनाऊं व्यथा तुम्हारी तुमसे पली हैं सदियां सारी,
चाहे नर हो या फ़िर नारी सब जाएं यह तुम पर वारी,
तुम देते सबको आहार ,
तुम हो जग के पालनहार।।
पैरों में फट गईं विमाईं चेहरों पर अब गहरी झाईं ,
जाने कैसी कसम है खाई काया की निर्बल परछाईं,
फिर भी जीते निराधार,
तुम हो जग के पालनहार।।
क़दर नहीं है जमाने को कौन समझेगा तेरे ख़ज़ाने को,
कब सजाएंगे आशियाने को मिलेगा पेट भर खाने को,
कौन करे सपने साकार,
तुम हो जग के पालनहार।।