_23_आरजू
आरजू है मेरी एक ख्वाबगाह बनाऊं,
सोंचता हूं शायद वह सच हो जाए,
तबाही के इस खौफ़नाक मंजर से,
कुछ तिनके तो शेष बच पाएं,
जलजला है ये तो बहता रहेगा,
शायद वक्त से पहले कुछ थम जाए,
आरजू है मेरी कुछ कर जाने की,
कोशिश में लगा हूं कुछ बचाने की।।
सोचता हूं कि एक नई दुनियां बनाऊं,
हसीं नजारे जमीं पे लाऊं,
चोंट खाए उन परवानों को,
मैं अपने सीने से लगाऊं,
दर्द की इस तपती धूप में,
लाकर फूलों को एक बिस्तर बनाऊं,
क्योंकि आरजू है मेरी कुछ कर जाने की,
चाहत जगी है फिर से बहार लाने की।।
सोए हैं जो अपने घरों में,
मैं उनको जगाना चाहता हूं,
जो देखना नहीं चाहते ये नजारे,
मैं उनको दिखाना चाहता हूं,
महरूम हैं जो अभी तक हकीकत से,
मैं उनको रूबरू कराना चाहता हूं,
क्योंकि आरजू है मेरी कुछ कर जाने की,
तमन्ना है मुझे सच का आइना दिखाने की।।
रोती हुई कोई सूरत ना नज़र आए,
दुखों को अब कोई ना गले लगाए,
कुरीतियों का उठा बवंडर अब थम जाए,
आडंबर न कोई कहीं बच पाए,
मिटाकर सभी अपनी बुराइयों से बाहर,
उज्ज्वल भविष्य का आकर सपना सजाएं,
ताकि आरजू बने हमारी कुछ कर जाने की,
नित रोज़ एक नया ख़्वाब सजाने की।।