980 खुद में ही खुशी ढूँढ कर मैं जीता रहा
जमाने की खुशियाँ, मिली जो ना मुझको।
खुद में ही खुशी को ढूँढ कर मैं जीता रहा।।
बेगाना समझ कर, तड़पाया तूने मुझको।
इसी गम को दूर करने में समय बीतता रहा।।
बहारों सा चाहा , मगर पाया खार तुझको।
इन काँटों को फूलों में बदलने को जूझता रहा।।
ऐ दिल अब तो सकून देना मुझको।
उबर जाऊँ, मैं आज तक जो डूबता रहा।