8. टूटा आईना
मकसद नहीं था कि दिल उन्हें ही चाहे,
मगर उन्हें ना चाहे तो फिर दिल किसे चाहे;
ये जलसा घर उनके रोज़ होता रहा कि,
तू जिसे चाहे वो भी तो किसी और को चाहे।
वो भूल बैठा है तेरे सचमुच की यादों को,
ये वाक्या झुठला दे कोई फिर भला तू क्यों चाहे।
मुहब्बत में हर मुश्किल मैं तेरी आसान कर दूँगा,
उस ज़ख्म को ना भूलकर भी तू इज़हार क्यों चाहे ।
झूठ की नावों में सजकर आये थे वो इधर कभी,
एक पतवार भी हो सच्चाई की ये दुआ भी दिल चाहे,
गुज़रा आईना टूटा है तो फिर नया आ जायेगा,
मगर ना हो अब कोई आईना ऐसा भला तू क्यों चाहे। I
~राजीव दुत्ता ‘घुमंतू’