(7) सरित-निमंत्रण ( स्वेद बिंदु से गीला मस्तक–)
स्वेद बिंदु से गीला मस्तक , आज इसे तू जल में धो ले !
पौरुष टूट रहा है तेरा , उजड़ चुका है तेरा डेरा
पास प्रकृति का सुन्दर घेरा , यह सब कुछ ही होगा तेरा
कुछ क्षण बहते शीतल जल से अपनी अंतस-प्यास बुझा ले
स्वेद बिंदु से गीला मस्तक , आज इसे तू जल में धो ले |
ऊपर सूरज , नीचे धरती, उठा बाहु आलिंगन करती
किरणों को अन्तस् में भरती , क्यों अपना उर शोषित करती ?
अरे ! किरण का जाल फ़ेंक कर , क्यों न मुझे आलिंगित कर ले
स्वेद बिंदु से गीला मस्तक , आज इसे तू जल में धो ले |
नीचे आग, लपट ऊपर है पास यहीं छाया का वन है
पास यहीं तो नदिया बहती , कितना मधुरिम शीतल जल है
अरे ! उष्ण साँसों को जल में, घोल घोल कर जीवन जी ले
स्वेद बिंदु से गीला मस्तक , आज इसे तू जल में धो ले |
मांझी गीत सुनाता आता है , स्वर से दिशा गुंजाता आता
नदी पार तू खड़ा ताकता , यह लहरों को छलता आता
आ जा , उब डूब कर , जल की थाह नाप कर मुझ को पा ले
स्वेद बिंदु से गीला मस्तक , आज इसे तू जल में धो ||
स्वरचित एवं मौलिक
रचयिता : (सत्य ) किशोर निगम