6) इंतज़ार
आज शाम भीनी-भीनी फ़िज़ा में,
निगाह जो उठ गई खुले आसमां की जानिब,
आँसू आ गए यकायक इन आँखों में,
हर आँसू तुम्हारा ही अक्स लिए था।
तुम्हारी जुस्तजू में पलक तक आया,
तुम्हारी ही ख़्वाहिश की दिल ने।
हवा दिल के तारों को झिंझोड़ कर निकल जाती,
छोड़ जाती मगर इक दर्द,
तुम्हारी जुदाई का दर्द।
दर्द
जो आँसू बन कर तुम्हारी ही जुस्तजू में,
आसमां की जानिब देखता
कि शायद
किसी परिंदे में ही दीदार हो जाए तुम्हारा।
हर आँसू ख़ुशी मिलने तक
रुका रहा पलक पर ही,
ख़ुशी मगर रूठी रही तुम्हारी तरह मुझसे।
बैठी रहती हूँ अब टूटे ख़्वाब लिए,
माज़ी की तरह तुम्हारे इंतज़ार में।
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नेहा शर्मा ‘नेह’