5) “पूनम का चाँद”
निराला होता सौंदर्य पूनम की रात का,
गोलाकार दूधिया दीदार होता, चाँद के आकार का।
बिखेरता यह चितचोर शीतलता एवम् मधुर रस को,
प्रतीत होता लुभावना चाँद का रूप, पूनम की रात को।
बिछ जाती है दूधिया चादर आसमाँ के आँगन में,
निर्मल वं स्वच्छ चमकता तारों के प्रांगण में।
नौकाएँ तैर रही शीतल जल के बहाव में,
नदियाँ/झरनें उछल रहे,चमकीली चट्टानों के टकराव में।
आश्चर्यजनक एवम् लुभावना अनुभव है,
उज्वल,शीतल सौंदर्य का वर्णन है।
कलम निहार रही पूनम के चाँद को,
लिखती जा रही रूप की रात को।
चकोर बनी घूम रही, पन्नों की क़तार में,
चलती जा रही सौंदर्य की रात के संसार में।।
“अनुकूल हो रहा पाचन, खीर चख रही भोर,
देखो उत्साह से पूनम का चाँद और चकोर”
✍🏻स्व-रचित/मौलिक
सपना अरोरा।