4354.*पूर्णिका*
4354.*पूर्णिका*
🌷 ये मन मेरा भटक ना जाए कहीं🌷
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ये मन मेरा भटक ना जाए कहीं।
बहती धारा बहक ना जाए कहीं।।
खुशियों की बस चाह रखते जिंदगी।
बनके पंछी चहक ना जाए कहीं।।
देती कब है साथ दुनिया देख ले ।
चलते चलते अटक ना जाए कहीं।।
सच पाँव यहाँ चूमती हैं मंजिलें ।
खून पसीना खटक ना जाए कहीं।।
औरों से हट चाह खेदू प्यार की ।
आके कोई झटक ना जाए कहीं।।
……….✍️ डॉ. खेदू भारती “सत्येश “
17-09-2024 मंगलवार