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17 Sep 2024 · 1 min read

4354.*पूर्णिका*

4354.*पूर्णिका*
🌷 ये मन मेरा भटक ना जाए कहीं🌷
22 22 2122 212
ये मन मेरा भटक ना जाए कहीं।
बहती धारा बहक ना जाए कहीं।।
खुशियों की बस चाह रखते जिंदगी।
बनके पंछी चहक ना जाए कहीं।।
देती कब है साथ दुनिया देख ले ।
चलते चलते अटक ना जाए कहीं।।
सच पाँव यहाँ चूमती हैं मंजिलें ।
खून पसीना खटक ना जाए कहीं।।
औरों से हट चाह खेदू प्यार की ।
आके कोई झटक ना जाए कहीं।।
……….✍️ डॉ. खेदू भारती “सत्येश “
17-09-2024 मंगलवार

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