32. नाकाफी
तबस्सुम रंगीन आँखें हर बार मुरझा जाती हैं,
कोई दूर दिल का टुकड़ा ऐसे जलाता है।
नाकाफ़ी हो जाते हैं सारे मयखानों के प्याले,
कोई खुद को अश्कों में ऐसे बहाता है।
ख़्वाब बुनवाये जाते हैं पुराने कच्चे धागों से,
कोई फनकार दिल का गांव ऐसे बसाता है।
मुबारक हो एक आईना हर गुमनाम चाहत को,
कोई ओझल हुए अंजाम फिर ऐसे दिखाता है।
मीनारों की कतार होते एक कोने में खड़े,
कोई शायर खुद का ग़म ऐसे बताता है।
घुमंतू के कहे अल्फाज़ दुनिया भुला देगी यूंही,
कोई अपना शहर में सबकुछ ऐसे भुलाता है।।
@ राजीव दत्ता ‘ घुमंतू ‘