3 _उसे और जलना था …
3 _उसे और जलना था …
वो थोड़ा उदास थोड़ा तन्हा था
सफर अकेले ही तय करना था ,
अंधेरा कितना भी हो घनेरा मगर
चांद को सूरज सा जलना था …
बड़ा ज़िद्धी था निखरता ही गया
जिन पत्थरों से उसे बिखरना था,
टूटे सितारों सा और मन्नत मांग लें
ज़माने को बस यही करना था …
चांद बेफिक्र था अपने दागों से
दुनियां की नजरों में संवरना था
कितने कवि रोशन हुए लिख कर
दाग दार है उसे और जलना था …
जिसने जो खोया वही खोजा उसमें
हीर , माँ या फिर कहानीयां गढना
चांद आओ ना कुछ देर यहां बैठो
सिखा दो मुझको अंधेरों से लड़ना …
– क्षमा ऊर्मिला