(3) कृष्णवर्णा यामिनी पर छा रही है श्वेत चादर !
कृष्णवर्णा यामिनी पर छा रही है श्वेत चादर !
प्रकृति जिसमें सुप्त था यह विश्व सारा ,
काल-दिक् सब अपरिभाषित गर्भ में थे !
दुःख औ ‘ सुख में न कोई भेद ही था
ज्ञान औ ‘ अज्ञान मिल विलयन बने थे !
देव, मानव, जंतु, औषधि का न था अस्तित्व कोई
न तो कोई ईश था, न धर्म या कि अधर्म ही थे |
कौन जाने प्रकृति के अंदर ही कोई पुरुष बैठा,
या कि अपनी पृथक सत्ता श्वेतवर्णा लिए बैठा,
एक चादर सी बुनी औ’ यामिनी पर डाल दी !
कृष्णवर्णा यामिनी पर छा रही है श्वेत चादर !
वह महाविस्फोट था या शिव-उमा की प्रेम लीला,
स्वयम्भुव ब्रह्मा के तप का या कि कोई सुफल था वह,
सातवें आकाश पर बैठे खुदा की सर्जना थी,
या कि जगती के पिता की एक इच्छाशक्ति थी वह,
तम सघन के पिण्ड में जो ईश-कण थे सघन पीड़ित
द्रव्य औ ‘ प्रतिद्रव्य बन, ब्रह्माण्ड में अब व्याप्त हैं वो,
भू, भुवः, स्वः हैं विनिर्मित, कृष्ण-गह्वर, श्वेत-गह्वर,
तारकों का पुंज है, मन्दाकिनी बहती है अविरल,
सूर्य, शशि, ध्रुव, सप्त ऋषि, ग्रह, राशिमण्डल घूमते हैं
ईश-जल के सिंधु में ब्रह्माण्ड अगणित झूमते हैं |
उर्वरा सौभाग्या पृथ्वी को भाष्कर वर मिला है
क्षितिज के ऊपर मगर वह अभी तक पहुँचा नहीं है
किन्तु अपने आगमन के कर दिए संकेत उसने
कृष्णवर्णा यामिनी पर छा रही है श्वेत चादर | |
स्वरचित एवं मौलिक ( खंडकाव्य “अतिकर्ण” का प्रथम पद )
रचयिता :(सत्य) किशोर निगम
नोट :-
१- महाविस्फोट = Big Bang २. ईश-कण = Boson / God Particle
३. ईश-जल =Hypothetic ETHER ४. द्रव्य-प्रतिद्रव्य = Matter & Anti Matter
५. कृष्ण गह्वर = Black Holes ६. श्वेत गह्वर = White Dwarfs
७. मन्दाकिनी = Milky ways / आकाशगंगा ८. भू: =पृथ्वी ९. स्वः =स्वर्ग १०. भुवः = अंतरिक्ष
११- यामिनी = रात १२. कृष्णवर्णा = श्याम रंग की १३- श्वेत = सफ़ेद १४-काल-दिक्=Time & Space