2931.*पूर्णिका*
![](https://cdn.sahityapedia.com/images/post/60f068b1fc9c1c9c4bd82c55d01618c9_926b1ece5202420a6b483350c7b5e9c7_600.jpg)
2931.*पूर्णिका*
🌷 मिलता वही जो हम बोते हैं🌷
2212 22 22 2
मिलता वही जो हम बोते हैं ।
सच हँसते कोई रोते हैं ।।
जीवन यहाँ है बस संवारे ।
कुछ दुख नहीं सुख सब खोते हैं।।
हीरा चमकते अंधेरे में ।
यूं बैल कोल्हू के जोते हैं ।।
हसरत जहाँ है पूरी होती ।
दिन रात न लगाते गोते हैं ।।
तकदीर बदले अपनी खेदू ।
नाहक न हम बोझा ढ़ोते हैं ।।
………..✍ डॉ .खेदू भारती”सत्येश”
13-01-2024शनिवार