2907.*पूर्णिका*
2907.*पूर्णिका*
🌷 लोग समझते कहाँ है🌷
212 212 122
लोग कुछ समझते कहाँ हैं ।
बदरिया बरसते कहाँ हैं ।।
मंजिलें पांव चूम लेती।
राह पर भटकते कहाँ हैं ।।
ठोकरें जब लगे हमें भी ।
ये जुबां अटकते कहाँ हैं ।।
पर्वत भी देखना हिलेंगे।
हिम्मत यूं चहकते कहाँ हैं ।।
बस रखे नेक सोच खेदू ।
मस्त चमन महकते यहाँ हैं ।।
…………✍ डॉ .खेदू भारती”सत्येश”
06-01-2024शनिवार