2889.*पूर्णिका*
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2889.*पूर्णिका*
🌷 पता नहीं क्यों रोने लगे🌷
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पता नहीं क्यों रोने लगे।
नया नया जो होने लगे।।
अजीब सा मंजर है यहाँ ।
वजूद खुद को खोने लगे।।
तलाशतें रहते जिंदगी।
खुशी सभी तो बोने लगे।।
भले बुरे रहते लोग भी ।
उदास देखो कोने लगे।।
उपासना खेदू बंदगी ।
निष्पाप अपना धोने लगे ।।
…………✍ डॉ .खेदू भारती”सत्येश”
03-01-2024बुधवार