2881.*पूर्णिका*
2881.*पूर्णिका*
🌷 सोचा था कुछ और🌷
22 221
सोचा कुछ और ।
निकला कुछ और ।।
स्वार्थी इंसान ।
कैसा है दौर ।।
भूखे अब पेट ।
आज कहाँ कौर ।।
पीड़ा संताप।
करते कब गौर।।
करते सब प्यार
अपना है ठौर।।
खेदू की शान ।
सुंदर सिरमौर।।
……….✍ डॉ .खेदू भारती”सत्येश”
02-01-2024मंगलवार