उफ़ ये गहराइयों के अंदर भी,
ॐ
सोलंकी प्रशांत (An Explorer Of Life)
जब तक आपका कामना है तब तक आप अहंकार में जी रहे हैं, चाहे आप
हाई स्कूल की परीक्षा सम्मान सहित उत्तीर्ण
ज़रा सी बात में रिश्तों की डोरी टूट कर बिखरी,
पुछ रहा भीतर का अंतर्द्वंद
।।अथ श्री सत्यनारायण कथा चतुर्थ अध्याय।।
सिर्फ़ वादे ही निभाने में गुज़र जाती है
मुझे पहचानते हो, नया ज़माना हूं मैं,
रंजीत कुमार शुक्ला - हाजीपुर
परहेज बहुत करते है दौलतमंदो से मिलने में हम
ग़ज़ल (तुमने जो मिलना छोड़ दिया...)
*साम्ब षट्पदी---*
रामनाथ साहू 'ननकी' (छ.ग.)
जिंदगी! क्या कहूँ तुझे
जितेन्द्र गहलोत धुम्बड़िया
कुछ रिश्ते भी रविवार की तरह होते हैं।
कोई शुहरत का मेरी है, कोई धन का वारिस
जन्म दिया माँबाप ने, है उनका आभार।
मैं अकेला ही काफी हू जिंदगी में ।
गुस्ल ज़ुबान का करके जब तेरा एहतराम करते हैं।