विवाह का आधार अगर प्रेम न हो तो वह देह का विक्रय है ~ प्रेमच
मेरे बाबूजी लोककवि रामचरन गुप्त +डॉ. सुरेश त्रस्त
चलो दोनों के पास अपना अपना मसला है,
गिरिधारी छंद विधान (सउदाहरण )
बोनूसाई पर दिखे, जब जब प्यारे सेब ।
कन्यादान हुआ जब पूरा, आया समय विदाई का ।।
वो इश्क़ अपना छुपा रहा था
मैं भविष्य की चिंता में अपना वर्तमान नष्ट नहीं करता क्योंकि
Love Is The Reason Behind
कुछ लोग रिश्ते में व्यवसायी होते हैं,
लड़के रोते नही तो क्या उन को दर्द नही होता
Sandhya Chaturvedi(काव्यसंध्या)
महकती रात सी है जिंदगी आंखों में निकली जाय।
Prabhu Nath Chaturvedi "कश्यप"