2683.*पूर्णिका*
2683.*पूर्णिका*
रो रहे हो क्यों भाई
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रो रहे हो क्यों भाई ।
सो रहे हो क्यों भाई ।।
नासमझ नादान बने।
पो रहे हो क्यों भाई ।।
ये कश्ती पतवार रखे ।
खो रहे हो क्यों भाई ।।
जिंदगी तो बोझ नहीं ।
ढ़ो रहे हो क्यों भाई ।।
रंग है सुंदर खेदू।
धो रहे हो क्यों भाई ।।
……….✍डॉ .खेदू भारती “सत्येश”
05-11-23 रविवार