कोई भी इतना व्यस्त नहीं होता कि उसके पास वह सब करने के लिए प
प्रेम अंधा होता है मां बाप नहीं
रमेशराज के विरोधरस के दोहे
बह्र -212 212 212 212 अरकान-फ़ाईलुन फ़ाईलुन फ़ाईलुन फ़ाईलुन काफ़िया - आना रदीफ़ - पड़ा
देखिए मायका चाहे अमीर हो या गरीब
-आजकल में थोड़ा स्वार्थी हो गया हु -
पत्थर भी तेरे दिल से अच्छा है
मुझे पाने इश्क़ में कोई चाल तो चलो,
आत्म जागरूकता कोई उपलब्धि हासिल करना नहीं है, बस आप स्वयं को
दोहे- उड़ान
राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
गोंडीयन विवाह रिवाज : लमझाना
‘मेरी खामोशी को अब कोई नाम न दो’
हिंदी दिवस पर ग़ज़ल
डॉ सगीर अहमद सिद्दीकी Dr SAGHEER AHMAD
*मनः संवाद----*
रामनाथ साहू 'ननकी' (छ.ग.)