*कहॉं गए वे लोग जगत में, पर-उपकारी होते थे (गीत)*
प्रीत हमारी हो
singh kunwar sarvendra vikram
आँखें कुछ ख़फ़ा सी हो गयी हैं,,,!
गुलाम और मालिक
सोलंकी प्रशांत (An Explorer Of Life)
वक्त आने पर भ्रम टूट ही जाता है कि कितने अपने साथ है कितने न
*प्रेम बूँद से जियरा भरता*
आस्मां से ज़मीं तक मुहब्बत रहे