कोयल
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जब तक यह मधुमास रहेगा
कूक तुम्हारी अमर रहेगी,
कूक पड़ी जब भी कानों में,
मन में मीठी सिहरन होगी।
आम्र मंजरी का प्रेम अमर,
हृदय के द्वार को खुलेगा,
तुम हो बसंत का सुंदर राग,
प्राणों में अमृत को घोलेगा।
है मधु सौरभ का वास यहीं,
कूक तुम्हारी याद कराये,
जब भी उपवन हुए सुवासित ,
कोयल मीठी तान सुनाएं।
हो लज्जाशीला, भीनी सी,
सौरभ की तुम प्रणय बयार हो,
नवशोभित कोमल से पत्तों में,
प्राणों का सुंदर मल्हार हो।
जब दूर बाग से आती ध्वनि,
हृदय वेदना जगा जाती,
जीवन के उष्ण शीत से पल को,
कोयल ऋतुराज बना जाती ।
~माधुरी महाकाश