जो घनश्याम तुम होते......
आदिवासी कभी छल नहीं करते
ऐ./सी.राकेश देवडे़ बिरसावादी
*मुंडी लिपि : बहीखातों की प्राचीन लिपि*
जिंदगी तेरे कितने रंग, मैं समझ न पाया
आप वो नहीं है जो आप खुद को समझते है बल्कि आप वही जो दुनिया आ
छोड़ कर घर बार सब जाएं कहीं।
राम आए हैं तो रामराज का भी आना जरूरी है..
तुमको हक है जिंदगी अपनी जी लो खुशी से
जीवन की दास्तां सुनाऊं मिठास के नाम में
जूनी बातां
जितेन्द्र गहलोत धुम्बड़िया
ख़्वाब में हमसे मिल कभी आके ,
ज़िन्दगी में खुशी नहीं होती
मन-क्रम-वचन से भिन्न तो नहीं थे
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सोलंकी प्रशांत (An Explorer Of Life)