23. गुनाह
मतलब के सब रास्ते हैं,
बेमतलब इस दुनिया में;
अब साथ नहीं तो कहते हैं,
ये भी गुनाह तुम्हारा है।
चमकते रास्तों से कट गई,
जो गाँव जाने की वो गली;
उनपर पाँव बढ़ा दिए हैं,
ये भी गुनाह तुम्हारा है।
शाम की खिड़की झाँकती रही,
सूने मन की आँगन में;
बचपन वापस नहीं आता है,
ये भी गुनाह तुम्हारा है।
दुबककर सो जाते थे तब,
खटिए के उन फीतों पर;
अब महल में नींद नहीं आती,
ये भी गुनाह तुम्हारा है।
तारों में खो जायेंगे जब,
जलते दीपक जीवन के;
कोसेंगे फिर ‘घुमंतू’ को कह,
ये भी गुनाह तुम्हारा है।।
~राजीव दत्ता ‘घुमंतू’