(21 )अभिनेय
जिन्दगी में सब अभिनेय,
करने में लगे हैं।
दिल से रिश्तों को निभाना भूल गए,
बस वक्त बिताने मे लगे हैं।
अभिनेय तो पल दो,
पल का होता है।
और वो भी पर्दे पर,
ही अच्छा लगता है।
रिश्तों में तो दिल ,
लगी होनी चाहिए।
जो दूर जाने पर,
महसूस होनी चाहिए।
एक कलाकार भी,
अभिनेय को पर्दे तक,
ही सीमित रखता है।
पर न जाने क्यों ,
एक इंसान ये कम समझता है।
रिश्तों में अपनापन लाइए,
बनावट नही।
न जाने कब जिन्दगी ,
धोखा दे दे खुश रहिए,
हर पल दुखी नही।