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19 May 2023 · 1 min read

19. ख़फ़ा ग़ुलाब

जाने क्यूँ ग़ुलाब काँटों से ख़फ़ा हो गया।
पास रहना मानो अब तो जफ़ा हो गया।।

काँटो ने की बहुत पहरेदारी गुलाब की।
फिर भी ग़ुलाब जाने क्यूँ बेवफ़ा हो गया।।

वफ़ादारी की फ़क़त कई सुबुतें दे कर भी।
सरेआम देखो बदनाम फिर वफ़ा हो गया।

काँटों पे अपनी जादुई खुशबू बिखेर कर।
ग़ुलाब न जाने किस सिम्त दफ़ा हो गया।।

काँटों के नसीब में तो तड़प ही लिखा था।
दर्द-ए-हिज्र उसके लिए तोहफा हो गया।।

मो• एहतेशाम अहमद,
अण्डाल, पश्चिम बंगाल, इंडिया

Language: Hindi
181 Views
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