19. कहानी
मेरे मयखाने में दस्तक
देने अब आए ना कोई,
यहाँ बस मय और मैं ही
रह गया और दास्तां मेरी।
मेरे ज़िक्र में अपनी निशानी
अब ढूँढोगी कैसे,
तेरा भी नाम आया है
बयान-ए-गुनाहों में मेरी।
बरसते आसमां जब देखते हैं
सूखे दरख्तों को,
उन्हें भी याद आती है
गुज़री ज़िंदगानी मेरी।
ठहरने को जी करता है
घुमंतू अब थक गया हूँ मैं,
नन्ही उंगलियों से लिखी जाएगी
कल फिर कहानी मेरी।।
~राजीव दत्ता ‘घुमंतू’