18. कन्नौज
मैं रोम-रोम तेरी
परछाई समेटे हूँ जी रहा,
तू आसमां का एक सितारा
और मैं जुगनू तेरा।
मेरे सीने की हर धड़कन
तेरा ही नाम लेती है,
तू है अशकों का समंदर
और मैं हूँ दायरा तेरा।
मेरी तनहाई में भी
जलसा तेरा रोज़ होता है,
मेरी गुमनामी का चर्चा है
तू और मैं चेहरा तेरा।
तेरी खुशबू की आदत
लगी है घुमंतू को ऐसी,
तू है मेरा इत्र गुलाब का
और मैं हूँ कन्नौज तेरा।
~राजीव दत्ता ‘घुमंतू’