16- उठो हिन्द के वीर जवानों
मुझको गीत नहीं भातें हैं,
गोरे गोरे गालों के
न मृगी नैनी सी आँखों के,
स्याह न उड़ते बालों के
मैंने अपने गीत चुने हैं,
भारत माँ के वीरों से
गाड़ तिरंगा चोटी पर बलि-
दान हुये रणधीरों से
उठो हिन्द के वीर जवानों,
अब तुम निद्रा त्याग करो।
वैरी सीमा लाँघ रहा है,
रण में तुम प्रतिभाग करो।।
भारत माँ की बलिवेदी भी,
आज बहुत चीत्कार रही।
आओ मेरे वीर सपूतों,
कहकर आज पुकार रही।।
आज यहाँ की धन्य धरा भी,
शत्रु खून की प्यासी है।
कर दो छलनी उनको वीरों,
छाई बहुत उदासी है।।
हरा सके जो तुमको ऐसा,
है धरती पर वीर कहाँ।
बुला रही है भारत माता,
धरती का है स्वर्ग जहाँ।।
प्राण हलक से खींचो उनकी,
घुस आए जो रातों में।
वक़्त नहीं तुम आज गवाना,
मानवता की बातों में।।
जिसकी खातिर फाँसी झूले,
उन वीरों का ध्यान करो।
एक-एक को चुन-चुन मारो,
या खुद को क़ुर्बान करो।।
बड़े भाग्य से यह दिन आया,
अपना कर्ज चुकाओ तुम।
नज़र गड़ाए बैठा दुश्मन,
सैनिक फ़र्ज़ निभाओ तुम।।
रणभेरी का बिगुल बजा दो,
शत्रु शीश के मर्दन को।
सिर के संग न जाने पाये
काटो उनकी गर्दन को।।
निश्चिंत रहो भारतवासी
नज़रें लगी हमारी हैं।
आने दो दहशतगर्दों को,
हुई सभी तैयारी हैं।।
घुसकर भारत की सीमा में,
उसने फिर ललकारा है।
ताल ठोक कर हम कहते हैं
पूरा पाक हमारा है।।
अजय कुमार मौर्य ‘विमल’