(11) छोटी – सी बात
आज पानी से मेरी एक छोटी सी मुलाकात हुई,
उस मुलाकात में एक छोटी सी बात हुई।
पानी ने कहा क्यों उदास होते हो,
जिंदगी के छोटे- चोट दूखों से ।
अरे! मुझे देखो मैं टक्कर लेता,
हू बड़े- बड़े पर्वतों से।
जीवन में छोटा सा दुख होने पर,उदास हो जाते हो।
मैं पर्वतों से टकरा आ जाता हूं नीचे और,
दे पेड़ो को पानी, उनके रूप में फिर से,
मेरा सिर जाता है ऊपर हो।
मैं कभी नहीं रोता जब इंसान मेरे अंदर डाल देता है,
अपना सामान गन्दा और खोटा।
हंसकर ले जाता हूं मैं उन्हे अपनी लहरों में,
तो तुम क्यों घबराते हो जिंदगी के छोटे- छोटे पहरो में।
मेरे बिना इंसान कुछ भी नहीं फिर भी उसे ,
मेरी परवाह नहीं लेकिन मैं अपना कर्तव्य नहीं भूलता।
तो फिर तू क्यों है जिंदगी के दुखो से मुरझाता।
मेरी इस छोटी सी मुलाकात की,
इस छोटी सी बात को कभी ना भुलाना।
जिंदगी चाहे जो गम दे,
उसे हंसकर बिताना कभी न डोलना।