(10) मृत्यु
मौत संसार का एक अटूट सत्य है,
फिर भी इन्सान को ये झूठ लगता है।
हर रोज़ हम किसी न किसी को विदा,
होते इस संसार से देखते हैं।
लेकिन फिर भी अपनी मौत,
के बारे में कभी नहीं सोचते हैं।
आज इंसान को पैसे की होड़ इतनी है,
कि वह, यह भी भूल गया कि,
उसे भी एक दिन दुनिया छोड़नी है।
लगा है अपने स्वार्थ के लिए एक – दूसरे,
का दिल दुखाने में।
नहीं जानता साथ कुछ न,
जाएगा इस मखाने से।
अरे! मस्त दीवाने धीरे- धीरे छोड़ दे ये,
पैसे की धूम में रहने के बहाने।
चल दे इंसानियत के पथ पर,
गुन- गुना कर हसीन तराने।