वो आरज़ू वो इशारे कहाॅं समझते हैं
1)वो आरज़ू वो इशारे कहाॅं समझते हैं
वो पल जो रो के गुज़ारे कहाॅं समझते हैं
2)मैं इंतज़ार में जगती रही हूं रातों को
ये आस्मां के सितारे कहाॅं समझते हैं
3)शब-ए-फ़िराक़ में बस चाँद हम-सफ़र है मेरा
मेरे फ़िराक़ को तारे कहाँ समझते हैं
4)वो मेरी जान की दौलत समझ रहे हैं फ़क़त
वो मेरे दिल के ख़सारे कहाँ समझते हैं
5)नदी है बीच में तो फ़ासला रहेगा सदा
ये राज़ दोनों किनारे कहाँ समझते हैं
6)उदास ऑंखों में जचता नहीं हसीं मंज़र
मगर ये बात नज़ारे कहाॅं समझते हैं
7)मंतशा हम तो मुहब्बत निभाएंगे उनसे
हम उनके वो हैं हमारे कहाॅं समझते हैं
🌹मोनिका मंतशा🌹