?ग़ज़ल?
??ग़ज़ल??
मीटर-212-212-212-212
शूल सी चुभ गई बेरुखी यार की
दर्द सा थी लिए बात इंकार की//1
ख़ार दिल में लिए ज़िंदगी बोझ है
दो घड़ी ही जियो पर जियो प्यार की//2
रूठ कर तो रहोगे तन्हा मौन बन
इक जगह हो पड़ी चीज़ बेकार की//3
रूह की हर सुनो छोड़ मन की जिरह
ज़िंदगी हो हसीं मौज गुलज़ार की//4
इक समर मान लो ज़िंदगी तो मज़ा
धार दे ये सदा तेज तलवार की//5
आज दिल हँस रहा ये हँसे यूँ सदा
इक दुवा है यही ईश आभार की//6
शौक़ प्रीतम ग़जल सा हुआ है मिरा
बात हर बोल दे तोल संसार की//7
??आर.एस.’प्रीतम’??