?दोहे-‘कोरोना पर’?
??दोहे-‘कोरोना पर’??
कोरोना फिर लौट कर,आया भारत द्वार।
संभल कर रहना सभी,व्याथि मौत का सार।।
दया धर्म से है परे,कोरोना है काल।
संक्रमण लिए रोग ये,चैन बढ़े तत्काल।।
दो ग़ज दूरी राखिए,मास्क़ पहनिए रोज।
सैनिटाइज़र कीजिए,बचने का हो ओज।।
कोरोना शैतान है,रहना इससे दूर।
करे फेफड़े ख़त्म ये,साँस रोक दे क्रूर।।
अपने घर परिवार की,देखभाल कर मीत।
कोविड संकट शीघ्र ही,जाएगा फिर बीत।।
सर्दी गर्मी झेलकर,बारिश में इतराय।
कोरोना ताक़त लिए,अपने चरण बढ़ाय।।
ग़लती कर फैला रहे,आप और हम रोग।
लापरवाही छोड़ दें,मिलें दूर से लोग।।
दोष ग़ैर को मत दियो,संभल जाओ आप।
ज़रा चूक से हम फँसें,कोरोना के श्राप।।
बढ़ो प्रकृति की ओर अब,जल थल नभ हो साफ़।
योग शुद्ध भोजन रहे,जीवन का इंसाफ़।।
कोरोना की हार तब,संग लड़ें हम जंग।
मुक्ति मिले इससे तभी,जीवन बढ़े उमंग।।
??आर.एस.’प्रीतम’??