दिल के दरवाजे भेड़ कर देखो - संदीप ठाकुर
श्री रमेश जैन द्वारा "कहते रवि कविराय" कुंडलिया संग्रह की सराहना : मेरा सौभाग्य
"" *एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्य* "" ( *वसुधैव कुटुंबकम्* )
उदास लम्हों में चाहत का ख्वाब देखा है ।
मेरी सिया प्यारी को देखा अगर
मुक्ता सी बौछार के, दिलकश होते रंग ।
विश्व कप लाना फिर एक बार, अग्रिम तुम्हें बधाई है
मुझ में ठहरा हुआ दर्द का समंदर है
अच्छे लोगों के साथ बुरा क्यों होता है (लघुकथा)
वो अपने दर्द में उलझे रहे
कैसे मैं खुशियाँ पिरोऊँ ?
प्रेमियों के भरोसे ज़िन्दगी नही चला करती मित्र...
नर को न कभी कार्य बिना
जूनियर झनक कैलाश अज्ञानी झाँसी
घर पर ध्यान कैसे शुरू करें। ~ रविकेश झा
सशक्त रचनाएँ न किसी "लाइक" से धन्य होती हैं, न "कॉमेंट" से क