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21 Apr 2022 · 1 min read

💐💐शुद्धि: आवश्यकता💐💐

शुद्धि: किम् आवश्यकम्।यथार्त: शुद्धि: यदा अंतःकरणे निवसति तदा सा निश्चित् रूपेण बहि: वातावरणे अपि स्वयंमेव विकास: करिष्यति। परं विषयानां वशीभूता: नराः सुद्धित्वस्य गरिमाया: विच्छेद: स्वविवेकस्य पतने कृते सति अवश्यं एव करिष्यति।
रामचरितमानसे ‘छूटइ मलहिं मलहिं के धोए, घृत की पाव जिमि वारि बिलोये।”
एषः प्रसंग: सम्यक् उदाहरणं।मनस: शुद्धित्वस्य सतत् हरिस्मरणं स्यात्।एषः परं आवश्यकम्।सुतराँ सतत् हरिस्मरेण साधक: सिद्धिं प्राप्त: करोति।
“साधक नाम जपे लय लाए, होहि सिद्ध अनिमादिक पाएं।”
अज्ञानस्य भावनापि शुद्धिमार्गे कठिनतां विकसित: करोति।तथापि गीतकारः कथयति यत् ‘श्रद्धावान् लभते ज्ञानम्’। अतः यत्र श्रद्धा वर्तते तु निश्चितैव अशुद्धित्वस्यापि। विनाश: भवति।
उठी बदरिया पाप की बरसन लगे अंगार,
सन्त न होते जगत में तो जल जाता संसार।।

©अभिषेक: पाराशरः

Language: Sanskrit
Tag: Quotation
118 Views
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