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8 Jun 2022 · 1 min read

💐सुखं अनित्य:💐

धनं यश: सम्मानं संपत्ति: गृहं च आदयः अस्माकं किं कार्यं करोति।

अरब खरब लौं दृव्य हैं, उदय अस्त लौं राज।
तुलसी जी निज मरन है, तो आवहि किहि काज।।

स्व वस्तु अस्ति,यस्मिन् अधिकारः करोतु।प्राप्त: वस्तु अपि स्व न,तदा अन्य आनयनं इच्छा किं कुर्वन्तु।यः प्राप्त: भवति, सः स्वसमीप कथं निवसति?सयोगः अनित्य:,वियोगः नित्य:।स्वकुशले अनित्यस्य इच्छा त्यजति। सत्य वार्तां स्वीकरणं मनुष्यस्य धर्म:।

©अभिषेकः पाराशरः

Language: Sanskrit
Tag: Quotation
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