??अहो अहो नर क्या नहीं?अपना भाग्य विधाता है??
लक्ष्य अगर ऊँचा हो तो परिश्रम भी बनता है,
क्या बंजर भूमि में कभी पुष्प नहीं खिलता है?
पुष्प का ऐसे खिलना, जीवन का सिद्धान्त सिखाता है,
अहो अहो नर क्या नहीं?अपना भाग्य विधाता है।।1।।
आशाएं तो मिट्टी के डेले सी भंगुर होती हैं,
कभी पूर्ण हुई कभी अधूरी कभी स्वप्न सी होती हैं,
फल के इन्द्रजाल में उलझना नर को पंगु बनाता है,
अहो अहो नर क्या नहीं?अपना भाग्य विधाता है।।2।।
कंटक भरी डाल पर पुष्प भी तो खिलता है,
क्या अंधड़ में बरगद का वृक्ष नहीं हिलता है,
वृक्ष का ऐसे हिलना संघर्ष की सीख सिखाता है।
अहो अहो नर क्या नहीं?अपना भाग्य विधाता है।।3।।
चपला भी चमकती गगन में, बादल की टक्कर से,
लोहा भी द्रव होता है उष्ण ताप के बल से,
प्रकृति का छोटा-छोटा कण भी अपने गीत सुनाता है,
अहो अहो नर क्या नहीं?अपना भाग्य विधाता है।।4।।
यदि पौरुष की आग न होती, क्रान्ति का बीज न उगता,
नदियों में यदि वेग न होता, हिन्द उदधि नहीं बनता,
परिवर्तन का यह नियम, पुरुष को सफल बनाता है,
अहो अहो नर क्या नहीं?अपना भाग्य विधाता है।।5।।
&&&अभिषेक पाराशर&&&