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27 Apr 2022 · 1 min read

🏵️🏵️शरीरस्य निरन्तर: वियोग: 🏵️🏵️

यः स्व नो अस्ति, यं स्व मन्यते विश्वासघात: च वंचनं च भविष्यत:।पूर्वे शैशवावस्थां स्वस्य अमन्येत्।किं सा अवस्था अधुना शाश्वत्?शरीरस्य निरन्तर: वियोग: भवन् अस्ति।
जीव: भगवता विमुख: अभवत्।विलग: न च संसारस्य सम्मुखं भवति सह नो।संसारेण केवलं सेवायाः कृते सम्बन्ध मन्येताम्।संसारं स्व च स्वस्य कृते च मन्यते।कानिचित् कार्याणि स्वस्य कृते न कृत्वा परमार्थस्य हेतु: कुर्वन्तु।भजनं ध्यानादिभि: स्वस्थ कृते न कुर्वन्तु। तु सुखं प्राप्तवति।अद्येयु: पुत्रै: अपि अलं आशयाः तु सुख प्राप्तवन्ति।

तेरे आने क्या उम्मीद मगर।,
कैसे कह दूँ कि इंतज़ार नहीं।
-फ़िराक गौरखपुरी

©अभिषेकः पाराशरः

Language: Sanskrit
Tag: Quotation
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