??केसरी किशोर कृपा करो अब??
केसरी किशोर निक कृपा की छोर, जा दास पे दिखा क्यों न देत हो।
नित ध्यान धरूँ, नाम जपूँ,योग करूँ, परि सुधि काहे न लेत हो।
सन्त सिरोमणि, ऐसी का भूलि परी, जा मूरख को चेत काहि न देत हो।
तुमहि सम्मुख रखि राम-राम जपूँ, फिर दरश दर्शाय क्यों न देत हो।
जा ‘अभिषेक’ को नेक प्रेम तें देखि लेऊ, का भूलि पर भुलाइ जाइ देत हो।
करुणा करो कपीश, किसकी कोर के आदेश की प्रतीक्षा करते हैं।
तुमहि हाँ अरु राम जी की हाँ में समानता, तो एतो विचार क्यों करते हैं।
ऐसी क्या कमी बनी जा मूरख पर, ज्ञानियों में श्रेष्ठ तौल क्यों न करते हैं।
‘अभिषेक’ कूँ जिआओ अब दरश दिखाय, एतो बिलम्ब काहे करते हैं।
अमंगल को समूल से नाशन बारे, प्रेम के सघन घन बर्षाय काहि न देत हो।
राम नाम के गवैया,ह्रदय में बसि, मेरे चित्त में राम समाय क्यों न देत हो।
जी मूढन को सरदार परौ दरबार, जाके मूड पे हाथ फिराइ क्यों न देत हो।।
क्षारि करें कलि काल के कराल कूँ, ऐसी शक्ति समाइ क्यों न देत हो।
नित नूतन सत विचार हिय उपजें, ऐसो आशिषु दे क्यों न देत हो।।
‘अभिषेक’ कहै दे देउ जाय राम भक्ति, ऐसी व्यवस्था चलाइ क्यों न देत हो।