??गज़ल??
मापनी
1222 1222
बड़ी मुश्किल से पाला था
वो मेरा था, निराला था
उसे कण-कण बचाकर के
फ़क़त मैंने संभाला था
बहुत महफूज़ रक्खा था
वही अमृत का प्याला था
ज़माने की हक़ीक़त में
कहीं थोड़ा सा काला था
वो लोहा था, तपा कर ही
खरा सोना निकाला था
जिसे वो बाज ले भागा
मिरे मुँह का निवाला था
– शिव मोहन यादव