??अवधूत बना बैठा यह मन ??
अवधूत बना बैठा यह मन,
करता नहीं चिन्तन विमल -विमल
निर्लज्ज वेश धारण करके,
करता यह कैसी उथल पुथल ।।1।।
ठगता यह मानव मन को,
करके यह उसकी बुद्धि भ्रमित,
मधुप चुनें ज्यों कुसुम मार्ग,
पर यह चुनता नीच मार्ग ।।2।।
करता यह पतन मानव मन का,
मिल जाए यदि कुसंग मार्ग,
उत्पन्न करें यह सहस्त्र हाथ,
जब मिले रसना का साथ।।3।।
लिए विशालता उदधि जैसी,
पर दर्शाता यह नीच भाव,
माखी जैसा करता व्यवहार,
कभी बैठे मल, कभी बैठे फल।।4।।
‘इन्द्रियाणाम् मनश्चामि’
मिला ऋषिकेश का वरदान,
पर दौड़े क्यों यह इधर उधर,
चुनता नहीं यह ईश मार्ग।।5।।
चंचल है मन, कृष्ण बड़ा,
करते यह अर्जुन करुण पुकार,
कृष्ण कहा, चुनो योग मार्ग,
वैराग्य शस्त्र से करो वार।।6।।
##अभिषेक पाराशर(9411931822)##