?ग़ज़ल? तेरे आग़ोश के शाये पुराने हो गए लेकिन ।
ग़ज़ल ।दीवाने हो गये लेकिन।
तेरे आग़ोश के शाये पुराने हो गये लेकिन ।
उसी मदहोश हरक़त मे दिवाने हो गये लेकिन ।।
बहुत चाहा किसी के संग चलू मै ढूढ़ने मंजिल ।
वफ़ा तेरी मुहब्बत का चुकाने हो गये लेकिन ।।
चले आओ अभी यादों का हि बिस्तर सजाया हूं ।
मिलन अबतक अधूरा है ज़माने हो गये लेकिन ।।
छुपाया था तेरे आने के पहले तक मेरे हमदम ।
रुके आंखों से अश्को को गिराने हो गये लेकिन ।।
तजुर्बा है अलग तेरा मुहब्बत आजमाने का ।
मिली फुर्सत मुझे ग़म से सयाने हो गये लेकिन ।।
यकीं मानो कि तन्हा हूं सँजोये याद हरपल की ।
ख़ुदा ही बेरहम निकला भुलाने हो गए लेकिन ।।
मिली न तू तेरे वादों पे क़ायम तो रहा’ रकमिश ।
तिरी चाहत मे लाखों दिल दुखाने हो गये लेकिन ।।
राम केश मिश्र