【12】 *!* पेड़, पतझड़ और बसंत *!*
पतझड़ आया पेडों से, पत्ते कर गये प्रस्थान
हरा – भरा कभी जो गुलशन था, लगता अब वीरान
पतझड़ आया ………….
{1} बिन पत्तों के हरा पेड़ भी, लगता है बेजान
छीन ली आकर पतझड़ ने, पेडों की सुन्दर शान
वक्त़ ने आकर पत्ते लूटे, करता पेड़ बयान
हाय बिधाता कैसे होगी, अब मेरी पहचान
पतझड़ आया ………….
{2} कभी पछियों के साये थे, मुझ पर मेहरबान
मेरी शरण ले कभी वो मिल, गाते थे सुन्दर गान
मैं उजड़ा तो दूर हो गये, सारे ही मेजबान
कभी थी खुशी की लहर जहाँ, अब बिन पत्तों की खान
पतझड़ आया ………….
{3} क्षणभंगुर सुन्दरता मेरी, शेष हैं अब मम प्रान
भ्रम में जीता था पहले, अब मिट गया सब अग्यान
दो पल के हैं सुख इस जग मैं, बात सभी लो जान
वक्त एक सा रहता नहीं, सबको ही रहे ये ध्यान
पतझड़ आया ………….
{4} मैं तो पेड़ हूँ मेरा क्या है, हुआ मुझे अब भान
मुझसे भी ज्यादा इस जग में, दुःखी हुआ इन्सान
बुरे वक्त ने मानव लूटा, वक्त बडा़ बलवान
मानव दुनिया में ही, मानव रहता मरे समान
पतझड़ आया ………….
सीखः- हमें समय के रहते अपनी जिम्मेदारियों को समझ लेना चाहिए।
Arise DGRJ { Khaimsingh Saini }
M.A, B.Ed from University of Rajasthan
Mob. 9266034599