【 23】 प्रकृति छेड़ रहा इंसान
रूह तक काँँप जाती है, सुनो सब मेरी दर्द से
काट रहे जो लोग यहाँँ, पेड़ों को गर्व से
{ 1} पैसों की लालच में, कितने अंधे हुए हैं लोग
पर्यावरण को नष्ट करने का, लगा है जिनको रोग
मिटा रहे सौंदर्य धरा का, करें नए प्रयोग
निज जीवन को बचाने फिर से, क्या होगा संयोग?
मेरा यह पैगाम है जग के, मानव सर्व से
भुलो नहीं तुम खुद को, रहो सब अपने गर्व से
रूह तक काँँप……….
{2} प्रकृति से छेड़छाड़ जो, मानव करता जायेगा
निश्चित है, वह आज नहीं तो, कल जी भर पछतायेगा
दसों दिशाओं के प्रकोप से, मानव नहीं बच पायेगा
क्या उजाड़े भूमंडल एक दिन, तू भी उजड़ ही जाएगा
फिर ना चलेगा काम किसी का, कोई भी तर्क से
मिटेगी सबकी शानो शौकत, धरती की पर्त से
रूह तक काँँप……….
{3} वातावरण में मानव विष, फैलाए शौक से
वो दिन भी आना है, स्वयं जीयेगा ख़ौफ़ से
साँँस भी ना ले पायेगा तू, झूठे रौब से
लाखों कमा भले ही तू, फरेबी जॉब से
फैले बिषैली वायु, सोया क्यों अपने फर्ज से
काँँपें प्राण सभी नके मूर्ख, लाइलाज मर्ज से
रूह तक काँँप……….
{4} पेड़ न काटो पेड़ लगाओ, पेड़ से जीवित जग सारा
पेड़ों से ही दुनियाँँभर में, बह सकती है सुख धारा
हरियाली से हरा – भरा जो, वातावरण हमारा है
हरा – भरा जग को रखेंगे, यही हम सब का नारा है
हम बदलेंगे युग बदलेगा, थोड़े से बस फ़र्क से
बरसेंगी झोली भर खुशियाँँ, अंबर के उस अर्श से
रूह तक काँँप…………
खैमसिंह सैनी 【राजस्थान】