【 आख़री ख़त 】
तुम्हारा ख़त मिला
खून में नहाया हुआ
अल्फाज रोते हुऐ मिले
मानो रिहाई की दुहाई दे रहें हों..
ख़त देखकर उतना ही स्तब्ध हूँ
जितना पहली बार हुआ था
तुम्हें देखकर..
भोर की पहली किरण में
चमकती ओस की बूँद सी तुम..
मैंने कैद कर लिया था तुम्हें
अपनी आँखों में उसी रोज़
चैन ही नहीं
नींद भी गँवा चुका था..
याद है मुझे
मेरी बाइक पर बैठ
बातें करती थी हवाओं से
मुट्ठी में भर लेती थी आसमां
और ताज़ा खुली सांसो को..
चंद लम्हे मेरे संग बिताये
कर देते थे तुम्हें
पुनर्जीवित
घटने लगते थे
तुम्हारी आँखों के नीचे बनें
गहरे काले आँसुओं के बादल
और फ़िर से बोलने लगती थी
तुम्हारी खूबसूरत आँखें..
कई बार सोचा अकेले में कि
तुम्हारे अरमान
तुम्हारी चाहत को समेट
निकल जाऊं कहीं दूर
जहाँ कोई न हों
सिर्फ़ मैं और तुम…
मगर मेरी रानी “रौनक़”
संस्कारों और समाज की
बेड़ी नें मेरे ही नहीं
तुम्हारे पैर भी बाँधे हुऐ हैं
चंद वर्षों में विवाह के बंधन में बंध
जब कभी तुम आओगी
इन्हीं गलियों में
जिम्मेदारियों की चूड़ियां पहनें
समझदारी की गोल बिंदी लगाये
मैं वहीं मौजूद रहूंगा
तुम्हें निहारने
यादों की खिड़की से झांकते हुऐ
तुम्हारी झोली में
डालूंगा दुआओं के फूल,
आगामी जीवन की
खुशियों के लिये
प्रार्थना करता हुआ
मैं मौजूद रहूंगा हमेशा
तुम्हारे इर्द गिर्द….
नितिन शर्मा